NCERT Solutions for Class-12 Hindi (Antral Bhag-2) Chapter-1 सूरदास की झोंपड़ी


1. चूल्हा  ठंडा किया होता तो,दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा  होता ?नायकराम के इस कथन में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर: यह कथन नायकराम ने कहा था। इस कथन में निहित भाव इस प्रकार है कि सूरदास के जल रहे घर से उसके शत्रुओं को प्रसन्नता हो रही होगी।जगधर के पूछने पर की आज चूल्हा ठंडा नहीं किया था? इसके उत्तर में नायकराम ने  यह उत्तर दिया था कि चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता। नायकराम कहना चाहता है कि इस घटना से उसके शुत्रओं को प्रसन्न होने का अवसर मिल रहा है। लोगों ने यह सोचा कि सूरदास के चूल्हे में जो अंगारे बचे थे, उनकी हवा से शायद यह आग लगी थी। परन्तु सच यह नहीं था। भैरों ने सूरदास के झोपड़े में जान बूझकर आग लगाई थी। नायकराम जानता था कि आग चूल्हे की वजह से नहीं लगी है। किसी ने लगाई है।


2. भौरों ने सूरदास की झोपड़ी क्यों जलाई ? 

उत्तर : भैरों ने अपने झूठे अहंकार के कारण सूरदास को अपने दुश्मन के रूप में मान लिया था और उससे बहुत क्रोधित था। वह इतना क्रोधित था कि उसने सूरदास जैसे गरीब का घर तक जला दिया। केवल एक छोटी सी बात थी - एक दिन जब भैरों और उसकी पत्नी सुभागी के बीच झगड़ा हुआ तो गुस्से में सुभागी सूरदास के घर रहने चली गई । भैरों को यह पसंद नहीं आया । दूसरी ओर सूरदास भी धार्मिक संकट की स्थिति में था । वह हताश सुभागी को बेसहारा नहीं कर पाया । गरीब आदमी इतना छल नहीं जानता था । विनम्रता से सुभागी को मना नहीं कर पाया और अपने घर में रहने दिया। यह भैरों के लिए असहनीय था। उसका मन बेचैन था । सूरदास के इस कार्य से उसे अपना अपमान महसूस हुआ और उसने सूरदास से बदला लेने का फैसला किया । हर हाल में सूरदास को सबक सिखाना चाहता था। जिस घर पर उसने सुभागी को रखा था भैरों ने उसी घर को जला ददिया इस तरह उसने सूरदास की झोपड़ी में अपने तथाकथित अपमान का बदला लेने के लिए आग लगा दी । 


3. ‘ यह फूस की राख न थी उसकी अभिलाषाओं की राख थी।संदर्भ सहहत विवेचना कीजिए।

उत्तर: सूरदास एक अँधा भिखारी था। उसकी संपत्ति में एक झोपड़ी, जमीन का छोटा-सा टुकड़ा और जीवनभर जमा की गई पूंजी थी। यही सब उसके जीवन के आधार थे। ज़मीन उसके किसी काम की नहीं थी। उस पर सारे गाँव के जानवर चरा करते थे। सूरदास उसी में प्रसन्न था। झोपड़ी जल गई पर वह दोबारा भी बनाई जा सकती थी लेकिन उस आग में उसकी जीवनभर की जमापूँजी जलकर राख हो गई थी। उसे दोबारा इतनी जल्दी जमा कर पाना संभव नहीं था। उसमें 500 सौ रुपए थे। उस पूँजी से उसे बहुत-सी अभिलाषाएँ थी। वह गाँववालों के लिए कुँआ बनवाना चाहता था, अपने बेटे की शादी करवाना चाहता था तथा अपने पितरों का पिंडदान करवाना चाहता था। झोपड़ी के साथ ही पूँजी के जल जाने से अब उसकी कोई भी अभिलाषा पूरी नहीं हो सकती थी। उसे लगा कि यह फूस की राख नहीं है बल्कि उसकी अभिलाषाओं की राख है। उसकी सारी अभिलाषाएँ झोपड़ी के साथ ही जलकर राख हो गई। अब उसके पास कुछ नहीं था। बस दुख तथा पछतावा था। वह गर्म राख में अपनी अभिलाषाओं की राख को ढूँढ रहा था।

 

4. जगधर के मन में ककस तरह का ईष्याभ-भाव जगा और क्यों? 

उत्तर- सूरदास के घर में आग लगी और उसकी झोपड़ी जलकर राख हो गई।ये आग किसने लगवाई ? जब यह जगधर को पता चला तो वह भैरों के घर गया।भैरों से मिलने पर पता चला कि उसने बस आग ही नहीं लगवाई बल्कि सूरदास की पूरी जमा पूँजी भी हथिया ली है अर्थात् सूरदास के पाँच सौ रुपये पर अब भैरों का क़ब्ज़ा था।भैरों के पास इतना रुपया देख जगधर को अच्छा नहीं लगा।उसे लगने लगा कि इतने पैसों से भैरों की जिंदगी की सारी कठिनाइयाँ पल भर में दूर हो सकती है।भैरों की चाँदी होते देख जगधर से रहा न गया और वह मन ही मन भैरों से जलने लगा | जगधर के मन में भी लालच भर गया । वह भैरों के इतने रुपये लेकर आराम से जिंदगी जीने के ख्याल से ही तड़प उठा।भैरों की खुशी जगधर के सबसे बड़े दुख का कारण बन गई थी ।

 

5. सूरदास जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त क्यों रखना चाहता था ? 

उत्तर : सूरदास एक अँधा भिखारी था। वह लोगों के दान पर ही जीता था। एक अँधे भिखारी के पास इतना धन होना लोगों के लिए हैरानी की बात हो सकती थी। इस धन के पता चलने पर लोग उस पर संदेह कर सकते थे कि उसके पास इतना धन कहाँ से आया। वह जानता था कि एक भिखारी को धन जोड़कर रखना सुहाता नहीं है। लोग उसके प्रति तरह-तरह की बात कर सकते हैं। अतः जब जगधर ने उससे उन रुपयों के बारे में पूछा, तो वह सकपका गया। वह जगधर को इस बारे में बताना नहीं चाहता था। जगधर के द्वारा यह बताए जाने पर कि वह रुपया अब भैरों के पास है, तो उसने उन रुपयों को अपना मानने से इंनकार कर दिया। वह स्वयं को समाज के आगे लज्जित नहीं करना चाहता था। वह जानता था कि कोई उसकी गरीबी का मजाक नहीं उड़ाएगा। लोगों को यह पता लगा कि उसके पास इतना धन था, तो वह लोगों को इसका जवाब नहीं दे पाएगा। अतः वह जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त रखना चाहता था।


6.' सूरदास उठ खड़ा हुआ और विजय - गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा । ' इस कथन के संदर्भ में सूरदास की मनोदशा का वर्णन कीजिए ।

उत्तर : सूरदास अपने जीवन में संचित पूँजी की चोरी से दुखी था।उसने महसूस किया कि उसके जीवन में कुछ भी नहीं बचा है।परेशानी , दुःख , ग्लानि और निराशा के भाव उसे हर पल महसूस हो रहे थे । अचानक उसने घीसू द्वारा मिठुआ को कहते सुना कि “ खेल में रोते हो " , इस बयान ने अचानक सूरदास के मूड पर एक चमत्कारी बदलाव किया।दुःखी और निराश सूरदास फिर से जी उठा , यह महसूस करते हुए कि जीवन संघर्षों का नाम है।जीवन में हार जीत तो जारी रहेगी व्यक्ति को चोटों और मेहनत से डरना नहीं चाहिए , जीवन के संघर्षों का सामना करना चाहिए । जो मनुष्य जीवन के इस खेल को स्वीकार नहीं करता है वह दुख और निराशा के अलावा कुछ नहीं पाता।घीसू के शब्द उसे समझाते है कि खेल में बच्चे भी रोना पसंद नहीं करते।वह फिर क्यों रो रहा है ? सूरदास उठा और उसने दोनों हाथों से राख के ढेर को उड़ाना शुरू कर दिया।यह ऐसे शख़्स की मनोदशा है जिसने हार का मुंह तो देखा लेकिन हार नहीं मानी बल्कि अपनी हार को जीत में बदल दिया ।


7. ‘ तो हम सौ लाख बार बनाएँगे । ‘ इस कथन के संदर्भ में सूरदास के चरित्र का विवेचन कीजिए ।
उत्तर : इस कथन को ध्यान से समझने पर हमें सूरदास के चरित्र की निम्नलिखित बातें सामने आती हैं।-
(क) दृढ़ निश्चयी- वह एक दृढ़ निश्चयी व्यक्ति है। रुपए के जल जाने की बात ने उसे कुछ समय के लिए दुखी तो किया परन्तु बच्चों की बातों ने जैसे उसे दोबारा खड़ा कर दिया। उसे अहसास हुआ कि परिश्रमी मनुष्य दोबारा खड़ा हो सकता है। उसने दृढ़ निश्चय से मुसीबतों का सामना करने की कसम खा ली। पछताना छोड़कर उसमें नई हिम्मत का समावेश हुआ।
(ख) परिश्रमी- वह भाग्य के भरोसे रहने वाला नहीं था। उसे स्वयं पर विश्वास था। अतः वह उठ खड़ा हुआ और परिश्रम करने के लिए तत्पर हो गया। उसने यही संदेश मिठुआ को भी दिया कि जितनी बार उसकी झोपड़ी जलेगी, वह उतनी बार उसे दोबारा खड़ा कर देगा।

(ग) बहादुर- सूरदास बेशक शारीरिक रूप से अपंग था परन्तु वह डरपोक नहीं था। मुसीबतों से सामना करना जानता था। इतने कठिन समय में भी वह स्वयं को बिना किसी सहारे के तुरंत संभाल सकता है। बहादुरी युद्ध के मैदान में नहीं देखी जाती है। जीवन रूपी युद्ध के मैदान में भी देखी जाती है। इसमें सूरदास बहादुर व्यक्ति था।

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